आखिर क्यों भगवान कृष्णा अपने सर पर मोरपंख धारण करते हैं जानिए इसके पीछे की पूरी कथा After all, why Lord Krishna puts a peacock on his head, know the whole story behind it.
इसका एक जो प्रमुख कारण ये हैं
सारे संसार में मोर ही एकमात्र ऐसा प्राणी माना जाता है जो अपने सम्पूर्ण जीवन में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता है. मोरनी का गर्भ धारण मोर के आँसुओ को पीकर होता है. अतः इतने पवित्र पक्षी के पंख को स्वयं भगवान श्री कृष्ण अपने मष्तक पर धारण करते हैं
और दूसरा जो कारण हैं उसके पीछे एक कथा हैं जो भगवान श्री कृष्ण के कालखंड की हैं
बचपन से ही माता यशोदा अपने लल्ला के सर पर मोर पंख को सजाती थीं. बड़े होने के बाद कृष्ण खुद भी इसे अपने सर सजाते रहे हैं, जिसका कारण है कि स्वयं भगवान भी मोर की ही तरह पवित्र हैं. भले ही उन्हें रास रचैया कहा जाता है, लेकिन वो इन सब से बहुत दूर रहे हैं.
भगवान श्री कृष्ण की लीला का समय था, गोकुल में एक मोर रहता था, वह मोर बहुत चतुर था और श्री कृष्ण का भक्त था, वह श्री कृष्ण की कृपा पाना चाहता था।
एक मयुर कृष्ण का दीवाना बन कर कृष्ण के द्वार पर खङा हो गया,हर पल वह गीत गाता
हे साँवरे तुम ही माता,तुम ही पिता
तुम ही मेरे रक्षक
तेरे बिन मेरा कौन सहारा
हे श्याम मुरारी!!
पर समय गुजरता जाये एक दिन से ,एक वर्ष गुजरने को आया पर भगवान कृष्ण ने, उसकी तरफ ध्यान ही नही दिया,न दाना पानी
एक दिन मयुर रोने लगा,मयुर को रोते देखकर एक मैना उड कर मयुर के पास आकर बोली"हे मयुर राजा तुम क्यों रो रहे हो??"
तब मयुर ने मैना से कहा , मैं हर दिन कृष्ण को पुकारता हूँ, हर पल इसकी राह निहारता हूँ पर,इसने मेरी एक ना सुनी
साल गुजर गया कद्र तक नही जानी, नही मुझे दाना पानी के लिए पूछा"
मैना बोली तुम मेरे साथ बरसाने चलों ,वहा राधा रानी तुम्हे जरूर दाना पानी डालेगी,तेरी कद्र भी करेगी"
मयुर ओर मैना उड कर बरसाने श्री राधा रानी के द्वारे पहुच कर मयुर फिर वही गीत गाने लगा
साँवरे तुम ही मेरी माता तुम ही मेरे पिता
तेरे बिना मेरा कौन सहारा
तेरे बिन मैं कहाँ जाऊ!!
यह सुनकर राधे दौङकर मयुर को गले लगाकर मयुर को बङे प्रेम से दाना पानी दिया
ओर बोली हे मयुर तुम कहाँ से आये हो,ओर साँवरे का नाम तुम कैसे जानते हो ?
तब मयुर ने अपनी साऱी कहानी राधे को सुना दी
राधे ये सुनकर बोली"हे मयुर कृष्ण एसे नही हैं,अगली बार तुम जब कृष्ण के पास जाओ तो
ये गीत गुनगुनाना
हे राधे तुम ही मेरी माता,तुम ही मेरे पिता
तेरे बिन मेरा कौन सहारा
हे बरसाने की राधे रानी!!!
मयुर फिर उड कर कृष्ण के द्वारे पहुच कर गीत गुनगुनाने लगा!
हे बरसाने की राधे रानी तुम ही माता ,तुम ही पिता मेरी
तेरे बिन मेरा कौन सहारा!
यह सुनकर कृष्ण दौङकर आये ओर मयुर को गले से लगा कर प्रेम करने लगे ओर पूछा
"हे मयुर राजा तुम कहाँ से आये ओर तुम मेरी प्रिय राधे का नाम कैसे जानते हो??"
तब मयुर बोला, वाह रे छलिया
पहले मैं एक साल तक तुम्हारे द्वारे पर बैठा रहा तब तुमने मेरी खबर भी नही ली ,अब जब मेने राधे का नाम लिया तब तुम मुझे प्रेम कर रहे हो
कृष्ण बोले हे मयुर राजा पहले एक साल तक मेने तुम्हारी खबर नही ली,इसका मैं दोषी हूँ पर अब जब तुमने मेरी प्रिय राधे का नाम लिया हैं,इसपर
मैं तुमको ये वरदान देता हूँ कि जब तक ये पृथ्वी पर मानव जीवन रहेगा,तेरा पंख मेरे मुकुट पर सँजा रहेगा
तेरी ही महिमा गायी जाये
सारे संसार में मोर ही एकमात्र ऐसा प्राणी माना जाता है जो अपने सम्पूर्ण जीवन में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता है. मोरनी का गर्भ धारण मोर के आँसुओ को पीकर होता है. अतः इतने पवित्र पक्षी के पंख को स्वयं भगवान श्री कृष्ण अपने मष्तक पर धारण करते हैं
और दूसरा जो कारण हैं उसके पीछे एक कथा हैं जो भगवान श्री कृष्ण के कालखंड की हैं
बचपन से ही माता यशोदा अपने लल्ला के सर पर मोर पंख को सजाती थीं. बड़े होने के बाद कृष्ण खुद भी इसे अपने सर सजाते रहे हैं, जिसका कारण है कि स्वयं भगवान भी मोर की ही तरह पवित्र हैं. भले ही उन्हें रास रचैया कहा जाता है, लेकिन वो इन सब से बहुत दूर रहे हैं.
भगवान श्री कृष्ण की लीला का समय था, गोकुल में एक मोर रहता था, वह मोर बहुत चतुर था और श्री कृष्ण का भक्त था, वह श्री कृष्ण की कृपा पाना चाहता था।
एक मयुर कृष्ण का दीवाना बन कर कृष्ण के द्वार पर खङा हो गया,हर पल वह गीत गाता
हे साँवरे तुम ही माता,तुम ही पिता
तुम ही मेरे रक्षक
तेरे बिन मेरा कौन सहारा
हे श्याम मुरारी!!
पर समय गुजरता जाये एक दिन से ,एक वर्ष गुजरने को आया पर भगवान कृष्ण ने, उसकी तरफ ध्यान ही नही दिया,न दाना पानी
एक दिन मयुर रोने लगा,मयुर को रोते देखकर एक मैना उड कर मयुर के पास आकर बोली"हे मयुर राजा तुम क्यों रो रहे हो??"
तब मयुर ने मैना से कहा , मैं हर दिन कृष्ण को पुकारता हूँ, हर पल इसकी राह निहारता हूँ पर,इसने मेरी एक ना सुनी
साल गुजर गया कद्र तक नही जानी, नही मुझे दाना पानी के लिए पूछा"
मैना बोली तुम मेरे साथ बरसाने चलों ,वहा राधा रानी तुम्हे जरूर दाना पानी डालेगी,तेरी कद्र भी करेगी"
मयुर ओर मैना उड कर बरसाने श्री राधा रानी के द्वारे पहुच कर मयुर फिर वही गीत गाने लगा
साँवरे तुम ही मेरी माता तुम ही मेरे पिता
तेरे बिना मेरा कौन सहारा
तेरे बिन मैं कहाँ जाऊ!!
यह सुनकर राधे दौङकर मयुर को गले लगाकर मयुर को बङे प्रेम से दाना पानी दिया
ओर बोली हे मयुर तुम कहाँ से आये हो,ओर साँवरे का नाम तुम कैसे जानते हो ?
तब मयुर ने अपनी साऱी कहानी राधे को सुना दी
राधे ये सुनकर बोली"हे मयुर कृष्ण एसे नही हैं,अगली बार तुम जब कृष्ण के पास जाओ तो
ये गीत गुनगुनाना
हे राधे तुम ही मेरी माता,तुम ही मेरे पिता
तेरे बिन मेरा कौन सहारा
हे बरसाने की राधे रानी!!!
मयुर फिर उड कर कृष्ण के द्वारे पहुच कर गीत गुनगुनाने लगा!
हे बरसाने की राधे रानी तुम ही माता ,तुम ही पिता मेरी
तेरे बिन मेरा कौन सहारा!
यह सुनकर कृष्ण दौङकर आये ओर मयुर को गले से लगा कर प्रेम करने लगे ओर पूछा
"हे मयुर राजा तुम कहाँ से आये ओर तुम मेरी प्रिय राधे का नाम कैसे जानते हो??"
तब मयुर बोला, वाह रे छलिया
पहले मैं एक साल तक तुम्हारे द्वारे पर बैठा रहा तब तुमने मेरी खबर भी नही ली ,अब जब मेने राधे का नाम लिया तब तुम मुझे प्रेम कर रहे हो
कृष्ण बोले हे मयुर राजा पहले एक साल तक मेने तुम्हारी खबर नही ली,इसका मैं दोषी हूँ पर अब जब तुमने मेरी प्रिय राधे का नाम लिया हैं,इसपर
मैं तुमको ये वरदान देता हूँ कि जब तक ये पृथ्वी पर मानव जीवन रहेगा,तेरा पंख मेरे मुकुट पर सँजा रहेगा
तेरी ही महिमा गायी जाये
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