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सर काट दे दियो क्षत्राणी जानिए राजस्थान की महानतम वीरांगना महरानी हाड़ी रानी की महागाथा ( sar kat de diyo kshtrani know about the great queen of rajasthan hadi rani

जब हम राजस्थान के इतिहास के पन्नो को उलटते हैं तो एक ऐसी महान वीरांगना की महागाथा नज़र आने लगती हैं जिसको सुनते ही हर भारतीय के रोंगटे खड़े हो जाते हैं की राजस्थान में ऐसी महान वीरांगनाओं ने भी जन्म लिया था

हाड़ी रानी सलूम्बर के सरदार राव रतनसिंह चुण्डावत की पत्नी थी , इस महान वीरांगना के बलिदान की यशोगाथा आज भी राजस्थान के हर अंचल में सुनाई पड़ती हैं , उन्होंने अपने पति  के युद्ध से आशंकित मन को शांत करने के लिए थाल में सजाकर अपना  सर भेंट कर दिया , ताकि उनके पति पूरी निष्ठां से युद्ध लड़ सकें

                  चुण्डावत  मांगी सेनाणी                                                      सर काट दे दियो क्षत्राणी




रानी की शादी को एक सप्ताह ही बिता था , शादी की मेहंदी भी हाथों से नहीं उत्तरी थी , और इसी बीच महाराणा राजसिंह का सन्देश प्राप्त हुआ , की औरंगजेब की सहायता के लिए आ रही मुग़ल  सेना को आप रास्ते  में ही रोककर युद्ध करें , यह सन्देश रतनसिंह का मित्र शार्दुलसिंह लेकर आया था , महाराणा का पत्र शार्दुल ने रत्नसिंह को देते हुए कहा , कि आपको  तुरंत औरंगजेब की सहायता के लिए  दिल्ली से आ रही सैन्य टुकड़ी को रोकना हैं तब तक महराणा राजसिंह औरंगजेब से निपट लेते हैं
महाराणा ने कहा हैं की ये काम खतरनाक हैं लेकिन मुझे पूरा विस्वास हैं की तुम ये कार्य पूरी निष्ठा से कर लोगे ,
( राणा राजसिंह द्वारा रानी चारुमति से विवाह और जजिया कर का विरोध करने के कारन औरंगजेब की महाराणा से कड़ी शत्रुता हो गयी थी )

पत्र मिलते ही हाडा सरदार बिना किसी विलम्ब किये अपने सैनिकों को युद्ध के लिए कुच करने का आदेश दे दिया , और अपनी नवविवाहित पत्नी से अंतिम विदाई  के लिए पहुंचा
रानी अपने पति को युद्ध की वेशभूषा में सुसज्जित देख कर सकपका गयी , और बोली कहाँ चले स्वामी
तब हाडा सरदार पूरी घटना बताई , तब रानी ने बड़े ही वीरतापूर्ण लहज़े में कहा कि अपने पति के पराक्रम को परखने की प्रतीक्षा क्षत्राणियां लम्बे समय से करती हैं आज  आपको ये अवसर प्राप्त हुआ  शत्रु से दो दो हाथ करने का , आप  जाइये
पत्नी से विदा लेने के बाद हाडा सरदार युद्ध के लिए निकल पड़े , किन्तु उनका मन अभी भी अपनी पत्नी के लिए बार बार आशंकित हो रहा था ,
इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी के पास संदेशवाहक को भेजा और पत्र लिखा प्रिये में युद्ध लड़ रहा हूँ , मुझे भूल मत जाना , रानी ने संदेशवाहक को लौटाया
इस तरह  से लगातार हाडा सरदार आशंकित होकर रानी को तीन दिन तक पत्र लिखता रहा अब एक पत्र में उसने रानी से अपनी कोई निशानी भेजने के लिए लिखा
अब रानी भी बड़ी सोच में पद गयी की स्वामी का मन अगर मेरे ही प्रेम में उलझा रहा तो वे युद्ध में विजयश्री कैसे वरन करेंगे , इसलिए उन्होंने एक बहुत ही बड़ा त्यागपूर्ण निर्णय लिया
और संदेशवाहक को अपनी अंतिम  निशानी को  केवल हाडा सरदार ही देख सके यह संदेशवाहक से कहा और कोई इसे न देख सके और कहा इसे थाल में सजाकर मेरे स्वामी को दे देना और कह देना अब आप बेफिक्र होकर अपना पूरा ध्यान युद्ध पर देवें
यह कहते ही रानी ने एक ही झटके में अपनी कमर से तलवार निकाली और एक ही झटके अपने सर को धड़ से  अलग कर दिया
यह देखते ही संदेशवाहक के नेत्रों से अश्रुधारा बह चली ,  कर्तव्य बड़ा कठोर होता हैं और उसने रानी के सर को थाल में सजाया , और हाडा सरदार को सुपुर्द किया , ये देखते ही हाडा सरदार के कंठ से स्वर निकला
प्रिये  अपने संदेही पति को ये कैसी सजा दे डाली तुमने ,
उसके बाद क्या था , हाडा सरदार एक भूखे शेर की भांति और औरंगजेब की सेना पर टूट पड़ा और उसने अपनी अंतिम सांस तक युद्ध किया  और औरंगजेब की सेना को आगे नहीं बढ़ने दिया
इस अभूतपूर्व विजय का श्रेय आज भी हाड़ी रानी के इस अभूतपूर्व बलिदान को जाता हैं
ऐसी महान वीरांगनाओं के अभूतपूर्व बलिदान को  कोटि कोटि वंदन करता हूँ और ईश्वर का शुक्र करता हूँ की मुझे  ऐसी वीर धरा राजस्थान की मिटटी में जन्म मिला
राजस्थान में आज  भी हाड़ी रानी की यशोगाथा गायी जाती हैं
इस महान वीरांगना के नाम पर राजस्थान सरकार ने एक हाड़ी रानी बटालियन का भी गठन किया गया हैं
तो अब में अपने लेखनी को यही विराम देता हूँ
जय जय राजस्थान 

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