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जानिए महान सम्राट अशोक की शोर्य गाथा और अशोक और राजकुमारी कोर्वकी की कथा ( samrat ashok and korvaki )

चक्रवर्ती सम्राट अशोक की शौर्य गाथाओं से भारत का इतिहास भरा पड़ा हैं लेकिन अभी भी अधिकांश लोग इनके जीवन के बारे में नहीं जानते हैं इसलिए हमने इस टॉपिक को चुना हैं

मौर्य वंश और भारत के सबसे शक्तिशाली शाशकों और सम्राटों की सूची में सम्राट अशोक का नाम शिखर पर हैं भारत को एक छत्र   में लाने  का श्रेय चंदरगुप्त मौर्य और आचार्य चाणक्य को जाता हैं लेकिन अपने दादा के साम्राज्य को विस्तृत रूप में अखंड भारत के रूप में स्थापित करने का श्रेय सम्राट अशोक को ही जाता हैं 
उसका साम्राज्य मौर्य राज्य उत्तर में हिन्दुकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी तक तथा मैसूर , कर्नाटका तक तथा पूर्व में बंगाल के पश्चिम में अफगानिस्तान तक फैला हुआ था , इतना विस्तृत सम्राज्य का सम्राट होने के कारन ही सम्राट अशोक को चक्रवर्ती सम्राट के नाम से जाना जाता हैं 

अशोक को प्रियदर्शी , देवनामप्रिय आदि नामों से जाना जाता हैं 

शाशनकाल   304 से 232 ईशा पूर्व तक 

सम्राट अशोक की माता का नाम रानी  धर्मा ( सुभद्रंगी  ) तथा पिता सम्राट बिन्दुसार थे 

सम्राट अशोक और राजकुमारी कौर्वकी की प्रेमकथा इतिहास के पन्नों में बहुत मशहूर हैं इस दिलचस्प प्रेम कहानी के बारे में जानने की मंशा हर व्यक्ति के मन में रहती हैं लेकिन इसके बारे में इतिहास में बहुत कम प्रमाण हैं लेकिन आज हम आपको इसकी पूरी कथा बता रहे हैं 

कोर्वकी को एक  मछुवारण के रूप में दिखाया गया हैं और कुछ जगह इसे एक राजकुमारी के रूप में दिखाया गया हैं जो पहले अशोक के विरुद्ध सेन्य संचालन करती हैं और इसी बीच अशोक को उनसे प्रेम हो जाता हैं 
और आगे चलकर वह अशोक की पत्नी बनती हैं 

अशोक के शाशनकाल में एक बहुत बड़ा और विनाशकारी युद्ध हुआ था , जिसे हम कलिंग युद्ध के नाम से जानते हैं मगध और कलिंग की शत्रुता के चलते इस युद्ध का आरम्भ हुआ , और इस युद्ध में लगभग डेढ़ लाख सैनिक मारे गये और इस युद्ध में अशोक की विजय हुयी थीं  
इतने  भारी संख्या में नरसंहार होने के कारण अशोक का मन व्यथित हो चूका था और अब उसका मन शांति की तलाश में व्याकुल हो रहा था , इसलिए अशोक ने सबकुछ अपने पुत्रों को सोंपकर बोध धर्म स्वीकार कर लिया 

अशोक के बोध धर्म स्वीकार कर लेने के बाद से ही भारत में विदेशी आक्रान्ताओं का प्रभाव बढ़ने लगा था और उसके बाद कोई ऐसा भारतीय  सम्राट नहीं हुआ जो भारत को फिर से एक छत्र में ला सके








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